2. • उपभोक्तावाद एक ऐसी आर्थिक प्रर्िया है र्िसका सीधा अथि है र्क समाि क
े भीतर व्याप्त
प्रत्येक तत्व उपभोग करने योग्य है |
• उसे बस सही तरीक
े से एक िरूरी वस्तु क
े रूप में बािार में स्थार्पत करने की िरूरत है|
• उसको खरीदने और बेचने वाले लोग तो स्वत: ही र्मल िाएं गे, क्ोंर्क मानव मस्तस्तष्क चीिों
को बहुत िल्दी ग्रहण कर लेता है, और िब एक ही चीि उसे बार-बार बेहद प्रभावी तरीक
े
से र्दखाई िाए तो ऐसे हालातों में उस उत्पाद का व्यस्तक्त क
े र्दल और र्दमाग दोनों पर गहरी
छाप छोड़ना स्वाभार्वक ही है|
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15. • आि की उपभोक्तावादी संस्क
ृ र्त हमारे िीवन पर हावी हो रही है।
• मनुष्य आधुर्नक बनने की होड़ में बौस्तिक दासता स्वीकार कर रहे हैं |
• आि उत्पाद को उपभोग की दृर्ि से नहीं बस्ति महि र्दखावे क
े र्लए
खरीदा िा रहा है।
• र्वज्ञापनों क
े प्रभाव से हम र्दग्भ्रर्मत हो रहे हैं।
उपभोक्तावादी संस्क
ृ ति हमारे दैतिक जीवि को तकस प्रकार प्रभातवि कर
रही है?
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17. गांधी जी िे उपभोक्ता संस्क
ृ ति को हमारे समाज क
े तिए चुिौिी क्ों कहा है ?
• उपभोक्ता संस्क
ृ र्त से हमारी सांस्क
ृ र्तक अस्तिता का ह्रास हो रहा है। इसक
े कारण हमारी सामार्िक नींव
खतरे में है।
• मनुष्य की इच्छाएँ बढ़ती िा रही है, मनुष्य आत्मक
ें र्ित होता िा रहा है। सामार्िक दृर्िकोण से यह एक
बड़ा खतरा है। भर्वष्य क
े र्लए यह एक बड़ी चुनौती है, क्ोंर्क यह बदलाव हमें सामार्िक पतन की ओर
अग्रसर कर रहा है।
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22. उपभोक्तावाद ने इस कदर अपनी पहुंच और िड़ िमा र्लया है र्क इसे
समाप्त र्कया िाना र्कसी भी रूप में संभव नहीं है| इसीर्लए एक
र्वकर्सत और पररपक्व मानर्सकता वाले नागररक को चार्हए र्क
उपभोक्तावाद की सीमा में बंधने क
े बिाय स्वयं सीमा में रहकर इसका
प्रयोग करे.
र्नष्कर्ि