The legends of Krishna's childhood and youth describe him as a cow-herder, a mischievous boy whose pranks earn him the nickname Makhan Chor (butter thief), and a protector who steals the hearts of the people in both Gokul and Vrindavana.
1. Babita Jha
Arunlata Mata Ji
Sindhumati Devi Dasi
Meena Mittal Mata Ji
Kiran Patel Mata Ji
Kusum joshi Mata Ji
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2. भाव भक्ति :
शुद्ध सत्त्व-ववशेष ववशेषात्मा प्रेम-सूर्ााशु-साम्य-भाक ।
रुविवभश वित-मासृणर्-क
ृ द असो भाव उच्यते ।।
( भक्तिरसामृतवसन्धु 1.3.1 )
अनुवाद :
भाव भक्ति भक्ति का वह अंग है विसका तत्व है समववत ( ज्ञान ) तथा ह्लावदनी ( आनन्द
) शक्ति- अथाता प्रेम क
े सूर्ा की एक वकरण विसका शीघ्र ही हृदर् में उदर् होगा और
िो हृदर् को वनमाल बनाएगी भगवान से वमलने, उनकी सेवा करने एवं उनक
े साथ प्रेम
का आदान-प्रदान की भावना से ।
तात्पर्ा:
वैधी भक्ति करने वाले व्यक्ति का ह्रदर् सूर्ा की भांवत प्रकावशत हो उठता है । विस तरह
लोको से दू र क्तथथत होने क
े कारण सूर्ा क
े वकसी तरह क
े बादल से ढक िाने की सम्भावना
नहीं रहती, उसी प्रकार िब भि सूर्ा की तरह शुद्ध हो िाता है तो उसक
े हृदर् में भावमर्
प्रेम का ववस्तार होता है िो सूर्ा प्रकाश की अपेक्षा अवधक तेिोमर् होता है । तभी क
ृ ष्ण क
े
प्रवत आसक्ति पूणा होती है और भि तुरंत अपने भावमर् प्रेम में भगवान की सेवा करने क
े
वलए उत्सुक हो उठता है। भगवान क
े शुद्ध प्रेम की पहली अवथथा भाव है ।
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3. भाव भक्ति क
े 9 लक्षण
क्षाक्तिर अव्यथा- कालत्वम ववरक्तिर मान्य-शुन्यता ।
आशा-बन्ध: समुत्कण्ठा नाम-गाने सदा रुवि: ।।
( भक्तिरसामृतवसन्धु 1.3.25 )
आसक्तिस तद-गुणाख्याने प्रीवतस तद-वसवत-थथले ।
इत्य आदर्ो नु भावा: स्युर िात-भावाड क
ु रे िने ।।
( भक्तिरसामृतवसन्धु 1.3.26 )
अनुवाद :
उस व्यक्ति क
े अनुभव र्ा गुण विसने भाव भक्ति क
े अंक
ु र को ववकवसत कर वलर्ा है,वनम्न है-
क्षाक्ति, अव्यथा- कालत्वम, ववरक्ति, मान्य-शुन्यता, आशाबंध, समुत्कण्ठा,भगवान क
े पववत्र नाम-
कीतान में अनुरक्ति, भगवान क
े वदव्य गुणों का वणान ( गुणाख्यान ) करने की उत्सुकता, क
ृ ष्ण की
लीलाथथली में रहने का आकषाण ।
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4. क्षाक्ति या अध्यवसाय
• सहनशीलता
• िब कोई व्यक्ति वववभन्न बाधाओं क
े आने
पर भी दुखी नहीं होता तो वह संर्मी तथा
अध्यवसार्ी कहलाता है ।
पररभाषा ववश्वनाथ िक्रवती -
वित्त क्षुब्ध होने क
े कारण उपक्तथथत होने पर भी वित्त का क्षुब्ध न होना
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Babita Jha
5. अव्यर्थकालत्वम
• समर् का सदुपर्ोग
• विस अनन्य भि ने क
ृ ष्ण क
े वलए भाव प्रेम
ववकवसत कर वलर्ा है वह सदैव भगवान की
प्राथाना करने में अपनी वाणी को लगाता है
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Arunlata Mata Ji
6. ववरक्ति या वैराग्य
• इंविर् को संतुवि देने वाली सब वस्तुओं क
े प्रवत पूरी
तरह से उदासीन होना
• भि की वास्तववक क्तथथवत तो वह है वक वह सारे
आकषाणों क
े रहते हुए भी उनसे लेश मात्र भी
आकवषात नहीं होता ।
• वैराग्य की असली कसौटी र्ही है
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Arunlata Mata Ji
7. मानशून्यता ( वनरवभमानता )
•क
ृ ष्ण भि अपने गुणों पर गवा नहीं करता
•क
ृ ष्ण भि अहंकार रवहत अथवा अपमान
सहते हुए भी क
ृ ष्ण क
े भाव प्रेम में
उनकी सेवा करते हैं
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Sindhumati Mata Ji
8. आशाबंद ( बृहत आशा )
• भि को क
ृ ष्ण पर पूणा ववश्वास रहता है
• उसे अपनी भक्ति क
े द्वारा भगवत धाम िाने की
वनष्ठा रहती है
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Sindhumati Mata Ji
9. समुत्कण्ठा
• वांवित सफलता की प्राक्ति हेतु उत्सुकता
• िब कोई व्यक्ति भक्ति में सफलता प्राि
करने क
े वलए अत्यवधक उत्सुक रहता है
तो र्ह उत्सुकता समुत्कण्ठा कहलाती है
।
• इसका अथा है- "पूणा उत्सुकता "
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Meena Mittal Mata Ji
10. भगवान क
े पववत्र नाम कीतथन
में अनुरक्ति
• भि का भगवान क
े नाम लेने में
सदा रुवि होती है
• वह उनका नाम लेने से अपने को रोक नहीं पाता
• उसका हाथ स्वर्ं ही माला िपने में िला िाता है
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Meena Mittal Mata Ji
11. आसक्तिस तद् -गुणाख्याने
• भगवान क
े वदव्य गुणों का वणान
• ( गुणाख्यान ) करने की उत्सुकता
• अपने प्रभु क
े गुणों का गान करने एवं वणान करने
की भीतर से प्रगाढ़ आसक्ति होना
• शुद्ध भिों हमेशा उत्सुक रहता है भगवान क
े कथा
गुणों की ििाा करने क
े वलए
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Kiran Patel Mata Ji
12. प्रीवतस तद-वसवत-स्र्ले
• क
ृ ष्ण की लीला थथली में रहने का
आकषाण
• भगवान क
े धाम िैसे श्री वृंदावन धाम से
एवं वृंदावन वास करने की प्रीवत हो
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Kusum Joshi Mata Ji